जहां कांग्रेस ने विपक्षी दलों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को शामिल नहीं किया है। वहीं केसीआर ने भी अपनी प्रस्तावित रैली में ऐसे किसी भी दल व नेता को आमंत्रित नहीं किया जिसका परोक्ष समर्थन भी कांग्रेस के साथ है।
नई दिल्ली। भारत जोड़ो यात्रा समापन के लिए जहां कांग्रेस ने विपक्षी दलों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को शामिल नहीं किया। वहीं, केसीआर ने भी अपनी प्रस्तावित रैली में ऐसे किसी भी दल व नेता को आमंत्रित नहीं किया, जिसका परोक्ष समर्थन भी कांग्रेस के साथ है।
रैली में लालू-नीतीश को नहीं मिला आमंत्रण
तेलंगाना में 18 जनवरी को खम्मम में बड़ी रैली करने जा रहे केसीआर ने अपने पुराने हमदर्द लालू-नीतीश की अनदेखी कर सिर्फ केजरीवाल और सपा नेता अखिलेश यादव को आमंत्रित किया है। केसीआर का लालू परिवार से निकट का संबंध रहा है। केंद्र में मंत्री रहते हुए दोनों दिल्ली में पड़ोसी भी थे। यही कारण है कि केसीआर के सपने जब राष्ट्रीय आकार ग्रहण करने लगे तो उन्होंने सबसे पहले तेजस्वी यादव को हैदराबाद बुलाकर उनसे परामर्श किया।
केसीआर और नीतीश दिखे थे एकसाथ
तब बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार थी और तेजस्वी नेता प्रतिपक्ष थे। समय थोड़ा और पास आया तो पिछले वर्ष 31 अगस्त को केसीआर ने पटना जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की। उस वक्त बिहार में भाजपा के हाथ सत्ता फिसल गई थी और नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ नई सरकार के मुखिया बन चुके थे। हालांकि, तब भी केसीआर ने नीतीश के नेतृत्व के बारे में पूछे गए प्रश्न पर चुप्पी साध रखी थी।
विपक्षी एकता की कवायद में फूट के आसार
इसके बाद भी पटना जाकर मिलने और साथ-साथ मीडिया के सामने आने से ऐसा मान लिया गया था कि शायद बाधाओं के बावजूद भाजपा के विरोध में नीतीश और केसीआर के साथ तेजस्वी की तिकड़ी बनेगी। लेकिन अब केसीआर का साथ छूट गया है। दरअसल, विपक्ष में नेतृत्व की लड़ाई में तृणमूल कांग्रेस केवल कुछ मुद्दो पर कांग्रेस के साथ आती है, वरना दूर-दूर होती है। आम आदमी पार्टी का हाल भी कुछ ऐसा ही है। जबकि केसीआर लगातार दूरी बनाकर रखे हुए हैं। अब जबकि वह केंद्रीय राजनीति में आने को सोच रहे हैं, तो तिकड़ी बनाकर एक मजबूत समूह बनाने की कोशिश में जुटे हैं, जो कांग्रेस से अलग दिखे।