शरद यादव का राजनीतिक सफर आसान नहीं था लेकिन वो काफी शानदार रहा था। 1974 में केवल एक चुनावी नारे की वजह से उन्होंने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी थी जो आज भी लोगों को याद है। इनके नारे ने चुनावी माहौल को इनके पक्ष में कर दिया था।
जबलपुर, ऑनलाइन डेस्क। जनता दल यूनाइटेड(JDU) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव का गुरुवार रात निधन हो गया है। 75 साल की उम्र में शरद यादव ने गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। गुरुवार की रात उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। इनके निधन से बिहार की राजनीति में शोक की लहर है। यह बिहार के काफी सक्रीय नेता थे, इनका राजनीतिक सफर आसान न था। इनके राजनीतिक सफर का एक किस्सा इनके प्रशंसकों को हमेशा याद रहता है कि कैसे एक नारा लगाकर इन्होंने कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी को शिकस्त दी थी।
"लल्लू को न जगदर को, मुहर लगेगी हलधर को"
1974 में पांचवीं लोकसभा में तात्कालीन सांसद सेठ गोंविद दास का निधन होने के बाद जबलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ। उस समय विपक्ष ने शरद यादव को संयुक्त रूप से प्रत्याशी बनाया था। अक्सर ही देखा गया है कि चुनावों में नारों की अपनी अलग ही अहमियत होती है। लेकिन इसका असली महत्व उसी चुनाव के परिणामों में सामने आया था। शरद यादव के पक्ष में नारा निकाला गया था 'लल्लू को न जगदर को, मुहर लगेगी हलधर को'। दरअसल, उस समय शरद यादव का चुनाव चिन्ह हलधर था। अपने इस चुनावी नारे पर शरद यादव ने जबलपुर में कांग्रेस की नींव को कमजोर कर जीत अपने ना कर ली थी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश नारायण अवस्थी को शिकस्त दी थी। इनकी जीत के बाद एक अन्य नारा सामने आया था 'गली-गली और कूचे-कूचे पैदल चलकर देखा है, अपना भैया सबका भैया सचमुच बड़ा अनोखा है।'
दो बार जीतने के बाद भी अधूरा रहा कार्यकाल
1974 में शरद यादव ने जीत हासिल कर ली लेकिन उनका कार्यकाल केवल तीन महीनों का ही रहा था। इसके बाद छठा लोकसभा चुनाव साल 1977 में हुआ। इस बार फिर शरद यादव जबलपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरे और जीत भी हासिल की लेकिन इस बार भी वे करीब तीन साल का कार्यकाल ही पूरा कर पाए।
1974 से 99 तक नौ बार हुए चुनाव
कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले जबलपुर संसदीय क्षेत्र में 1974 में छात्र नेता शरद यादव ने सेंध तो लगाई कार्यकाल कांग्रेस ही पूरा कर पाई थी। 1974 से 1999 तक उपचुनावों को लेकर नौ बार लोकसभा चुनाव हुए। इनमें से दो बार शरद यादव और चार बार बाबूराव परांजपे सांसद चुने गए लेकिन दोनों में से कोई भी अपना संसदीय कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया था।