राजमाता विजयाराजे सिंधिया त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। एक साधारण लड़की से राजनीति और राजमाता तक का सफर तमाम उतार-चढ़ाव के साथ बिताए। शादी के बाद उन्हें अपने पति के टाइटल की वजह से भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। खबर में पढ़े रोचक घटनाओं के बारे में-
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। मध्यप्रदेश की जब भी बात की जाती है तो ग्वालियर के सिंधिया घराने की चर्चा सबसे ऊपर होती है। स्वतंत्र भारत में राजवाड़ों ने शुरू से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इसमें सिंधिया परिवार सबसे ऊपर गिना जाता है। वहीं विजया राजे सिंधिया का नाम मध्यप्रदेश की राजनीति में सबसे अलग चमकता है। सिंधिया ‘भारतीय जनता पार्टी’ की प्रसिद्ध नेता थीं। इन्हें 'ग्वालियर की राजमाता' के रूप में जाना जाता था।
जीजाजीराव सिंधिया का अजीबोगरीब टाइटल
जीजाजीराव का टाइटल बेहद अजीबो-गरीब और बड़ा था। आप एक सांस में उनका पूरा नाम नहीं ले पाएंगे। उनका टाइटल था, 'लेफ्टिनेंट जनरल मुख्तार-उल-मुल्क, अम-उल- इकि्तदार, रफी- उश-शान, वाला शिकोह, मोहरा-शम-ए- दौरा, उम्दत्त-उल-उमराह, महाराजाधिराज, आलीजाह, हिसम-उश-सल्तनत, हिज हाइनेस सर जॉर्ज जीवाजीराव सिंधिया बहादुर, श्रीनाथमन्सूर-ए-जमा- फिदवी-हजरत-ए-माली-मुअज्जम-ए-रफीउद-दरजात- इंग्लिशिया ग्रेंड कमांडर ऑफ इंडियन एंपायर।'जमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी एक आत्मकथा 'प्रिंसेस' में बताया कि- 'एक बहुत ही साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति के साथ इतने सारे ओहदे लगाकर देखने में बड़ी कठिनाई होती थी।' उन्होंने आगे लिखा, 'कहां इतने सारे ओहदे और कहां वह साधारण इंसान जिसका जीवन घोड़ों, बंदूकों और अपने-अपको कठिन बयान से तंदुरुस्त रखने में बीता था।'
साधारण जीवन से महारानी बनने का सफर
दीपक तिवारी द्वारा लिखी गई 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश' किताब में विजयाराजे सिंधिया के निजी और राजनीतिक जीवन से जुड़ी रोचक घटनाओं का जिक्र किया गया है। इसमें उनके साधारण जीवन से महारानी बनने का सफर बताया गया है। शादी होने के बाद सागर से राजमाता विजयाराजे सिंधिया ग्वालियर आईं तो वह ग्वालियर की महारानी बन चुकी थीं। महारानी के रहने के लिए दो महल थे, जिन्हें आज ऊषा किरण पैलेस होटल के नाम से जाना जाता है।राजमाता विजयाराजे सिंधिया त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-बाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपना लिया था। सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने अपना पूरा जीवन जनसेवा में लगा दिया।
विजया राजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजया राजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। विजया राजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सबसे प्रिय बन गईं। और जल्द ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।