श्री मार्कंडेय महादेव धाम की महत्ता
पुराणों के अनुसार मृकण्डु ऋषि को शिवजी की तपस्या से मार्कंडेय नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उन्हें यह भी पता चल गया कि उनके पुत्र मार्कंडेय अल्पायु हैं। इससे वह निरंतर चिंतित रहते थे। पिता को चिंतित देख मार्कंडेय ने तप करने की ठानी और गंगा-गोमती के संगम तट पर पार्थिव लिंग की स्थापना करके तप करने लगे। 12 वर्ष की आयु पूरी होते ही यमराज के दूत मार्कंडेय को अपने साथ ले जाने के लिए आए, लेकिन भगवान शिव के कोप के कारण साथ न ले जा सके।
भगवान शिव ने मार्कंडेय जी को अमरत्व का आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस स्थान पर तुम्हारा धाम होगा, जिससे तुम्हारा स्थान मुझसे ऊंचा होगा। भक्तजन मुझसे पहले तुम्हारी पूजा करेंगे। मार्कंडेय महादेव धाम में आज भी गर्भगृह में ताखे पर विराजमान मार्कंडेय ऋषि की पूजा पहले होती है, फिर भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।
धाम में विकसित हो रही सुविधाएं
केंद्र सरकार के संस्कृति विभाग एवं प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा इस धाम के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई गईं और उन्हें पूरा भी किया गया। इससे बड़ी संख्या में यहां आने वाले भक्तों-पर्यटकों को सुविधाएं मिल रही हैं। धाम चौराहे से मंदिर परिसर तक शेड निर्माण, संगम घाट, राम जानकी मंदिर परिसर कुटी घाट का निर्माण, स्वर्ण शिखर का निर्माण, गंगा जेटी, जलज सफारी, इलेक्ट्रिक बस सेवा, तीन भव्य गेट आदि अनेक कार्य कराए गए हैं। अभी गेस्ट हाउस, मल्टी लेवल पार्किंग व चार लेन सड़क का निर्माण होना है।
पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण
पर्यटन सुविधाओं के विकास से यहां संगम घाट, मार्कंडेय महादेव घाट पर बोटिंग, तैराकी आदि का लुत्फ लेने वालों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है। पर्यटक कैथी गंगा घाट से संगम घाट तक नाव से प्रवासी पक्षियों को दाना खिलाते हुए गांगेय डाल्फिन को जल में कुलांचे मारते देखते हुए गंगा की लहरों का आनंद लेते हैं। कई लोग परिवार के साथ यहां महादेव के दर्शन के साथ ही पिकनिक मनाने आते हैं। विभिन्न स्कूलों के बच्चे भी शैक्षिक भ्रमण के लिए यहां आते हैं, जिससे उन्हें जल पारिस्थितिकी को समझने का अवसर भी प्राप्त होता है।
पूर्वांचल में पर्यटन पर जोर
मार्कंडेय धाम वाराणसी जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर है।
90 करोड़ की लागत से कराया जा रहा है मार्कंडेय महादेव धाम का भव्य विकास
11 करोड़ रुपये से किया गया है संगम घाट का निर्माण
11 करोड़ रुपये से निर्मित कराया गया है पाथवे
37 लाख रुपये से स्वर्ण मंडित कराया गया है मंदिर का शिखर