इनर लाइन परमिट के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट से केंद्र और मणिपुर को नोटिस

 

गैर आदिवासी लोगों का राज्य में प्रवेश प्रतिबंधित (फाइल फोटो)

याचिका में कहा गया है कि कानून (संशोधन) आदेश 2019 के माध्यम से यह प्रणाली लागू की गई है। इस आदेश से 140 वर्ष पुराने उपनिवेश कालीन कानून बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन 1873 (बीईएफआर) को विस्तार दिया गया।

नई दिल्ली, आइएएनएस। इनर लाइन परमिट (आइएलपी) की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और मणिपुर सरकार से जवाब मांगा है। आइएलपी के कारण गैर आदिवासी लोगों का राज्य में प्रवेश प्रतिबंधित है। आमरा बंगाली संगठन की ओर से दाखिल कराई गई याचिका में कहा गया कि यह प्रणाली बुनियादी तौर पर सामाजिक एकीकरण, विकास और इनर लाइन के बाहर तकनीकी उन्नयन की नीति के खिलाफ है। याचिका में यह भी दलील दी गई है कि आइएलपी राज्य में राजस्व जुटाने के बड़े स्रोत पर्यटन की राह में रोड़ा है।

याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने केंद्र और मणिपुर सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है, 'मणिपुर में आइएलपी प्रणाली के कारण ऐसा व्यक्ति जो राज्य का निवासी नहीं है, उसे इनर लाइन परमिट के लिए आवेदन किए बगैर राज्य में प्रवेश करने या कारोबार करने की इजाजत नहीं दी जाती है। यह प्रणाली संविधान के तहत नागरिकों को प्रदत्त बुनियादी अधिकार का उल्लंघन करती है।'

याचिका में कहा गया है कि कानून (संशोधन) आदेश, 2019 के माध्यम से यह प्रणाली लागू की गई है। इस आदेश से 140 वर्ष पुराने उपनिवेश कालीन कानून 'बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन 1873 (बीईएफआर)' को विस्तार दिया गया। ब्रिटिश शासन ने असम में चाय की खेती पर एकाधिकार के लिए यह कानून लागू किया था। याचिका में कहा गया कि आइएलपी अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड के जिलों में भी प्रभावी रूप से लागू है।