इमरान खान के राज में पाकिस्तान में हर क्षेत्र में हालात खराब हुए हैं। समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक पाकिस्तान में न केवन आर्थिक बदहाली बढ़ी है वरन कट्टरता में भी इजाफा हुआ है। पढ़ें यह रिपोर्ट...
इस्लामाबाद, एएनआइ। इमरान खान के राज में पाकिस्तान में हर क्षेत्र में हालात खराब हुए हैं। समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक पाकिस्तान में न केवन आर्थिक बदहाली बढ़ी है वरन कट्टरता में भी इजाफा हुआ है। मौजूदा वक्त में पाकिस्तान खराब मानवाधिकार रिकार्ड से जूझ रहा है। कनाडा में स्थित अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फार राइट्स के अनुसार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान , तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) और अफगान तालिबान जैसे चरमपंथी समूहों ने इमरान खान की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई है।पाकिस्तान के नेशनल काउंटर टेररिज्म अथारिटी के पूर्व प्रमुख ख्वाजा खालिद फारूक ने हाल ही में न्यूज इंटरनेशनल में एक तीखे लेख में कहा था कि पिछले साल दिसंबर में श्रीलंकाई नागरिक के साथ हुई बर्बरता ने देश में व्याप्त कट्टरपंथ को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया।
दरअसल लंबे समय तक 'मिस्टर तालिबान खान' के रूप में चर्चित हुए इमरान खान ने अफगानिस्तान में तालिबान के उदय का समर्थन किया और उसकी सैन्य जीत को इस्लामी जीत के रूप में देखा। इंटरनेशनल फोरम फार राइट्स एंड सिक्योरिटी के अनुसार हालांकि इमरान ने यह भी महसूस किया कि जाने अनजाने में उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों की तरह एक चरमपंथी समूह को प्रोत्साहित किया जो पाकिस्तान में कट्टरता को बढ़ावा देने में आग में घी डालने का काम किया।
इसके अलावा टीटीपी के साथ इमरान की बातचीत से कट्टरपंथियों का हौसला और बढ़ गया। सनद रहे आतंकवादी समूह टीटीपी को कुछ साल पहले तालिबान और अमेरिका के साथ एक कुटिल खेल खेलने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा लाया गया था। हालांकि यह आतंकी समूह पाकिस्तानी सेना और सरकार के लिए भष्मासुर साबित हुआ। टीटीपी पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ हो गया। यही नहीं अफगानिस्तान में तालिबान की ओर से इसे संरक्षण भी प्राप्त हुआ।
इमरान की गलती यही नहीं रुकी। उन्होंने तहरीक-ए-लब्बैक के साथ भी डील
की जिससे चरमपंथियों के मनोबल को और बढ़ावा मिला। इससे टीएलपी सदस्यों को
पाकिस्तान की सड़कों पर निडर होकर विचरने को छूट दी। इसके अलावा नवंबर 2021
में साद हुसैन रिजवी की रिहाई के बाद तो स्थितियां और बदतर हो गईं। दरअसल
स्वतंत्रता के बाद से चरमपंथी समूह हमेशा पाकिस्तानी समाज का एक अभिन्न अंग
रहे हैं। इंटरनेशनल फोरम फार राइट्स एंड सिक्योरिटी के अनुसार समय समय पर
चरमपंथियों के साथ सरकारी गठजोड़ ने देश के ताने-बाने को काफी हद तक
प्रभावित किया है।