मिलि‍ए 32 वर्षीय प्राकृतिक खेती की मास्‍टर ट्रेनर से, हाथों हाथ बिक रही खास तरीके से उगाई ये फसलें

 

मंडी की बाडीगुमाणू की रहने वाली निर्मला देवी।

 एक आम गृहणी किस तरह से अपने आप को सुदृढ़ कर सकती है इसका उदाहरण है मंडी की बाडीगुमाणू की रहने वाली निर्मला देवी। निर्मला ने तीन साल पहले प्राकृतिक खेती अपनाकर खुद को तो मजबूत किया

मंडी,  एक आम गृहणी किस तरह से अपने आप को सुदृढ़ कर सकती है, इसका उदाहरण है मंडी की बाडीगुमाणू की रहने वाली निर्मला देवी। निर्मला ने तीन साल पहले प्राकृतिक खेती अपनाकर खुद को तो मजबूत किया, साथ ही मास्टर ट्रेनर बनकर एक हजार के करीब लोगों को इस ओर प्रेरित कर सबके लिए उदाहरण बन गई हैं। 32 वर्षीय निर्मला अब प्राकृतिक खेती के लिए तैयार होने वाली खादों को स्वयं तैयार करती हैं और उनको लोगों को भी सरकार के तय दामों के अनुसार मुहैया करवाती हैं।

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पहले स्नातक तक की पढ़ाई कर चुकी निर्मला केवल किचन गार्डनिंग करती थी और इसमें भी रासायनिक खादों का प्रयोग होता था। गांव में आतमा परियोजना की ओर से लगे प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण शिविर में निर्मला देवी ने भाग लिया। वह इससे प्रभावित हुई तो पहले अपने घर के आसपास ही प्राकृतिक खेती के तरीके से खेती करना आरंभ की और जब इसके सार्थक परिणाम आए तो अपनी पांच बीघा जमीन पर फसलें उगाना शुरू किया। पहले एक साल तो इसका कुछ असर नहीं हुआ, लेकिन बाद में फसल अच्छी आने लगी और अब उन्होंने अपने खेत में उगाई फसलों को बेचना आरंभ किया है।

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अभी निर्मला सोयाबीन, गेहूं, गोभी आदि की खेती करती हैं। अपने बच्चों और परिवार के साथ-साथ वह खेती की ओर भी पूरा ध्यान देती हैं। यही कारण है कि विभाग ने उनको मास्टर ट्रेनर बनाया और अब वह बाड़ीगुमाणू सहित आसपास के गांव के लोगों को खेती में तैयार होने वाली खादों का प्रशिक्षण भी दे रही हैं।

निर्मला को देख आसपास के 50 किसान भी हुए प्रोत्‍साहित

निर्मला देवी बताती हैं कि उनके पति नवल किशोर ने उन्‍हें प्रोत्‍साहित किया। उसी का नतीजा है कि आसपास के ही 50 से अधिक किसानों को इस खेती के साथ जोड़ दिया है। निर्मला बताती हैं कि इस बार पहली बार अपनी फसलों को बेचा और इसका अच्छा रिस्पांस आया है। आय भी हो रही है। फसल में रासायनिक खाद न डालने से बीमारी का खतरा न के बराबर है। ऐसे में लोग भी इनको हाथों हाथ खरीद रहे हैं।

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प्राकृतिक खेती की फसल की अधिक मांग

प्राकृतिक खेती जब भी कोई किसान आरंभ करता है तो उसे पहले दो साल जमीन में हुए रासायनिक खादों के प्रभाव को कम होने में लगते हैं। लगातार जीवामृत, घनजीवामृत सहित अन्य प्राकृतिक खादें डालने से फसल की पैदावार बढ़ती है और तीसरे साल इसका परिणाम सामने आता है। निर्मला देवी द्वारा तैयार की गई सोयाबीन की फसल जो 150 रुपये किलो बिकी है, जबकि रासायनिक खेती से तैयार फसल की कीमत बाजार में 100 रुपये किलोग्राम है। फसल तैयार करने में रासायनिक खाद का प्रयोग न करने से यह स्‍वास्‍थ्‍य पर कोई प्रभाव नहीं डालती। यही कारण है कि प्राकृतिक तौर पर देसी खाद से तैयार फसल की कीमत और मांग दाेनों ज्‍यादा रहती है।

क्‍या कहते हैं निदेशक

आतमा परियोजना के निदेशक ब्रह्मदास जसवाल का कहना है परियोजना के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जा रहा हैं। निर्मला देवी ने इसके प्रति खासा उत्साह दिखाया और आज वह मास्टर ट्रेनर बनकर किसानों को जोड़ रही हैं।