नड्डा से पहले अमित शाह पर भी हुआ था हमला, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वामदलों से भी ज्यादा वाम

 तृणमूल का काडर वाम से भी ज्यादा सख्त और उग्र बनकर उभरा।


मई 2019 में जब शाह प्रचार करने कोलकाता गए थे तो भाजपा के रोड शो और विरोध कर रहे तृणमूल कार्यकर्ताओं की भिडंत में ही ईश्वरचंद विद्यासागर की प्रतिमा खंडित हो गई थी। आरोप दोनों ओर से लगे थे लेकिन इस बीच पत्थरबाजी में शाह बाल-बाल बचे थे।

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्तासीन होने के कुछ दिनों बाद ही यह चर्चाएं आम होने लगी थीं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वामदलों से भी ज्यादा वाम है। यह उनके शासन की नीतियों के कारण नहीं बल्कि उनके राज में तेज हुई हिंसक घटनाओं के कारण कहा गया था। तृणमूल का काडर वाम से भी ज्यादा सख्त और उग्र बनकर उभरा। गुरुवार को यह साफ दिखा जब भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष जेपी नडडा को भी नहीं बख्शा गया।

अमित शाह भी बाल-बाल बचे थे

यह घटना इसलिए खास है कि नड्डा पहले अध्यक्ष नहीं है। इससे पहले तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी बाल-बाल बचे थे। राजनीति के मंच पर अपने सबसे प्रखर राजनीतिक विरोधी दल के शीर्ष नेता पर हिंसक हमला साफ करता है कि ममता बनर्जी न सिर्फ हताश हैं बल्कि आने वाले दिनों में हिंसक घटनाओं की तीव्रता भी बढ़ सकती है।

केरल और पश्चिम बंगाल में हिंसा हावी

पूरे देश में फिलहाल केरल और पश्चिम बंगाल ही ऐसे राज्य हैं जहां चुनाव से लेकर सामान्य राजनीतिक घटनाओं में भी हिंसा हावी है। पश्चिम बंगाल में लंबे अरसे तक वाम का राज रहा और केरल में भी फिलहाल वाममोर्चा ही सत्तासीन है। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के चुनाव अधिकारियों ने हिंसा की आशंका से ड्यूटी पर जाने से मना कर दिया था। अगर राजनीतिक हत्या की बात की जाए तो प्रदेश में भाजपा से जुड़े लगभग अस्सी कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है।

भाजपा के रोड शो और विरोध कर रहे तृणमूल कार्यकर्ताओं की भिडंत में शाह बाल-बाल बचे थे

अचंभे की बात यह थी कि मई 2019 में जब शाह प्रचार करने कोलकाता गए थे तो भाजपा के रोड शो और विरोध कर रहे तृणमूल कार्यकर्ताओं की भिडंत में ही ईश्वरचंद विद्यासागर की प्रतिमा खंडित हो गई थी। आरोप दोनों ओर से लगे थे, लेकिन इस बीच पत्थरबाजी में शाह बाल-बाल बचे थे। गुरुवार को फिर से ऐसी घटना हुई जब नड्डा बचे। सामान्यतया हाईप्रोफाइल नेताओं की सुरक्षा में इतनी व्यवस्था जरूर की जाती है कि ऐसी घटनाएं न हों। लेकिन पश्चिम बंगाल में बार बार ऐसी घटनाओं का दोहराया जाना यह आशंका खड़ी करता है कि भावी विधानसभा चुनाव क्या निष्पक्ष और सुरक्षित हो पाएगा।